कभी चलते चलते मैं रुका
जब कुछ संशय हुआ
फिर कुछ सोच कर आगे बढा
जब कुछ संशय मिटा
कांटो भरी एक राह देख कर
फूलों की राह को जा पकडा
लेकिन फूलों ने ही मुझे छला
चोट खा कर जब मेरे विश्वास का सूरज ढला
तब पर्वत बन चुके ज़रोँ ने कहा
सीधे सपाट अंधेरों से हमेशा बेहतर है
उलझे हुए उजाले चुनो
हर चीज़ मिलेगी तुम्हे यहाँ, ऐ मुसाफिर
तुम अगर चुनौती चुनो
हेमंत यायावर
Tuesday, July 31, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
मॆ हमेशा यही सोचता था कि मेरा ये दोस्त कविता नही लिख सकता है. लेकिन उसका ये प्रथम प्रयास काबिले तारीफ़ है. आज तक केवल कहानी ही देखी थी इनकी तो पहली बार कविता देख कर प्रसन्न्ता हुई
Post a Comment