सफर की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहे...
सफर की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहे
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाए कदम और आ गई मंज़िल
मज़ा तो तब है के पैरों में कुछ थकान रहे
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज लगता है
तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे
मुझे ज़मीन की गहराइयों ने दाब लिया
मैं चाहता था सर पे आसमान रहे
अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है
मगर ये बात हमारे ही दरमियान रहे
मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई
मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे
वो इक सवाल है फिर उसका सामना होगा
दुआ करो के सलामत मेरी जबान रहे।
- राहत इंदौरी
Tuesday, November 6, 2007
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